भारतीय संस्कृति के शाश्वत ग्रंथों को सरल भाषा में जन-जन तक पहुँचाने का विनम्र प्रयास

अविस्मरणीय क्षण
मैं माटी की किंकरी जो बूँद पड़े गल जात। माटी की गुण धर्मिता मेरी कौन बिसात।।
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