OPoetic translation of Samveda


"वेदानामं सामवेदो अस्मि " मैं वेदों में सामवेद हूँ , भगवत गीता में श्री कृष्ण का यह उद्घोष सामवेद की गरिमा को स्वयं ही उद्घोषित करता है . साम का सम्बन्ध समन्वय और उपासना से है . सामपद की सिद्धि सा +मन और अस धातु से भी होती है .अतएव साम में जहाँ उपासना का उद्दात रूप विद्यमान है वहीं उसका नितांत वैज्ञानिक ऊहापोह भी है. यह समन्वय का प्रकार है . यह समन्वय है कर्म और ज्ञान का , कर्म और उपासना का , जगत और ब्रह्म का, लोक और परलोक का आदि कविता चिंतन की वस्तु है . यह मानवीय संवेदनाओं का शब्दात्मक चित्रण है.

वेदों में जीवन के सार का चिंतन है. वेदों के गूढ़ आशय को समझ कर उसके मर्माशय तक तो कोई बिरला मनीषी अध्येता ही पहुँच पाता है --------मेरा अस्तित्त्व ही क्या ? इस स्तुतिपरक सामवेद के काव्यात्मक अनुवाद में जो त्रुटियां हैं ,मेरी हैं , जो काव्यरस और माधुर्य है वह ईश्वरीय कृपा है , वस्तुतः यह श्रम साध्य न होकर कृपा साध्य है . सामवेद का काव्यानुवाद प्रस्तुत है . पुनश्चय सामवेद चौपाई छंद में रामायण की तरह गेय शैली में लाने के लिए भी डॉ. कीर्ति प्रयासरत हैं।